जातिवाद: सिर्फ छुआछूत ही नहीं बल्कि लाईलाज बीमारी है.. अब चौथा स्तम्भ भी चपेट में

Desk: यूं तो पूरे भारत में जातिवाद नामक छुआछूत की बीमारी अपनी जड़ें जमा चुकी है। जिसका फिलहाल कोई इलाज नजर नहीं आ रहा है। परंतु बिहार में इसका व्यापक प्रभाव देखने को मिल रहा है। यह बीमारी लोकतंत्र के तीनों खंभों कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका को पूरी तरह पहले ही अपनी चपेट में ले चुका था। अब लोकतंत्र का चौथा खंभा भी अब इसकी जद में आ चुका है। जो न सिर्फ हमारे समाज बल्कि पूरे राज्य के लिए महामारी का रुप लेने वाली है। वो दिन दूर नहीं जब इस बीमारी से हजारों नहीं बल्कि लाखों जानें जा सकती है।
कार्यपालिका और न्यायपालिका की स्थितिअगर आप इन दो स्थलों में से कहीं भी किसी कार्य हेतु जाते हैं, तो जातिवाद आपका काम आसान कर देता है। अर्थदण्ड में भारी कमी हो सकती है। जबकि अगर आपकी जाति का कोई व्यक्ति वहाँ न मिले तो आपको भारी मुश्किलों का सामना कर सकते हैं। खबर तो ये है कि जातिवाद के कारण बड़े से बड़ा काम भी आसान हो जाता है। जघन्य अपराध से भी छुटकारा मिल सकता है, अगर छुटकारा नहीं भी मिले तो कम से कम सजा की तो पूरी गारंटी है। उसी तरह अन्य सरकारी कार्यालयों की स्थिति है, जाति का अधिकारी या कर्मचारी मिल गया तो आप कोई न कोई रिश्ता निकालकर अवैध रूप से भी कार्य करबा सकते हैं। जमीन खरीदना से लेकर आधार कार्ड बनबाने तक जाति आपकी पूरी मदद कर सकता है।
विधायिका में जातिवाद बेहद गंभीरराजनीति में तो पूछिये ही मत। बिना जाति के नेताओं को जीत की गारंटी नहीं मिलती। बिना जाति देखे मतदाता वोट नहीं देते। जाति न हो तो कुछ भी नहीं। आपके क्षेत्र में विकास का भी पहला पैमाना जाति होता है। नेता जी के जाति वालों का विकास पहले, जातिवालों की पैरवी पहले, जाति वालों का काम पहले। अब वोट लेना है उनसे इतना तो बनता ही। आखिर उन्हीं के आशीर्वाद से नेता बने हैं। पूंजी का इस्तेमाल तो बाद की बात है। एक उदाहरण से समझाता हूँ, समझियेगा। मान लीजिये बिहार में कहीं हत्या या बलात्कार जैसा अक्षम्य अपराध हुआ तो वहां पीड़ितों को न्याय दिलाने बड़े-बड़े नेता पहुँच जाते हैं। हंगामा, जाम, आगजनी सब हो जाता है। परंतु कहीं अगर अपराधी नेताजी की जाति का हुआ तो ऐसे अपराध में भी नेताजी का कण्ठ अबरुद्ध हो जाता है। सवाल वोट बैंक का हो तो सारी संवेदनाएं मर जाती हैं। वही हाल जनता का भी है। नेताजी अगर उनकी जाति के हों भले ही वे लाखों करोड़ों के घोटालेबाज, बलात्कारी या हत्यारा ही क्यों न हों, उनकी नजर में उनकी बहुत इज्जत है। वहीं अगर जाति के नेता न हुए तो उनकी खैर नहीं होती। दिन-रात सुबह-शाम सोते-जागते उठते-बैठते गाली देते हैं। ऐसे एक-दो नहीं बल्कि अनगिनत उदाहरण मौजूद हैं।
पत्रकारिता का ग्रसित होना बेहद गंभीरअब यह बीमारी पत्रकारिता में भी लग चुकी है, जो एक बेहद ही गंभीर समस्या उत्पन्न कर सकती है। पत्रकार भी अब जातिवाद हो गए हैं। जाति वालों की खबर पहले लगेगी। जाति वालों के विरोध में कोई खबर नहीं चलेगी। जातिवालों के पाप को छुपाने की पूरी कोशिश होगी। उनके द्वारा एक दर्जन केले बांटने की खबर को पूरे शहर को भोज के तौर पर पेश किया जाएगा। और अगर जाति के न हुए तो फिर आपको रेल दिया जाएगा। विरोध में इतनी खबरें चलेंगी कि लोग आपको गुनहगार मानने लगेंगे। इनका वश चले तो अपने जाति के नेता जी को बिना चुनाव लड़े सांसद क्या प्रधानमंत्री बना दें। इतना न भी हुआ तो उनके समकक्ष तो जरूर बना के छोड़ेंगे।
क्या हो सकता है परिणाम ?अगर आप खबर पढ़ते-पढ़ते इतनी दूर तक पहुँचे हैं तो जरा बताइये कि कहाँ और क्या गलत लिखा है। और जरा सोचिये कि हम और हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है। क्या आपको नहीं लगता कि यदि ऐसा ही हाल रहा तो आने वाले दिनों में जातिवाद के लिये भीषण संघर्ष की स्थिति बन सकती है। खून-खराबे का लंबा सिलसिला चल सकता है। स्थिति बिल्कुल अराजक बन सकती है। सिर्फ अपना बर्चस्व और अपनी सत्ता के लिए? आपको नहीं लगता कि अगर इस लाईलाज बीमारी को जड़ से न मिटाया गया तो एक दिन हम सब मिट जाएंगे। सिर्फ ये धरती ही बच पाएगी। इसपर रहने वाले सबसे चतुर प्राणी का कोई नामोनिशान नहीं होगा। बेहतर होगा कि जल्द से जल्द संभल जाइए और इस छुआछूत से खुद को बाहर निकालिये, नहीं तो एक दिन आपके पास इससे बच निकलने का कोई उपाय नहीं होगा खुद मर जाने या दूसरों को मार डालने के सिवा.